प्रेरित धारणा (मोटिवेटेड परसेप्शन) क्या होता है ? what is motivated perception? - tech Gnb

Sunday, December 8, 2019

प्रेरित धारणा (मोटिवेटेड परसेप्शन) क्या होता है ? what is motivated perception?

प्रेरित धारणा (मोटिवेटेड परसेप्शन) motivated perception

मनोविज्ञान में इसका एक नाम भी है जिसको कहते हैं प्रेरित धारणा (मोटिवेटेड परसेप्शन)
चलिए हम आपको आज मोटिवेटेड परसेप्शन के बारे में बताते हैं।
प्रेरित धारणा (मोटिवेटेड परसेप्शन): अक्सर हमको, आपको और सब लोगों को भ्रम होता है की हम जो देखते हैं सब कुछ वैसा ही होता है। सच्चाई बिलकुल ही इससे अलग है। हम जो भी देखते हैं हैं वह हमारी आँखों द्वारा हमारे विजुअल कोर्टेक्स में प्रोसेस होता है। इसके बाद हमारा प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स हमारी स्मृति के आधार पर इसका मतलब निकालता है। यही परसेप्शन होता है।
लेकिन परसेप्शन जो हम देख रहे हैं उससे भिन्न भी हो सकता है। बाकी का उत्तर लिखने से पहले हम आपको एक उदाहरण देकर समझाते हैं। आप नीचे के चित्र को देखिये।
क्या आपको दो त्रिकोण दिख रहे हैं?
सबको यहां पर दो त्रिकोण दिखेंगें। लेकिन दो त्रिकोण हैं नहीं। हमारा परसेप्शन हमको बताता है कि यहां पर दो त्रिकोण हैं। असल में इसमें सिर्फ तीन वृत्त के भाग हैं और तीन त्रिकोण के भाग हैं और उनकी पोजीशन ऐसी है की हमारे दिमाग को भ्रम हो जाता है की ये तो दो त्रिकोण एक दूसरे के ऊपर हैं।
हमारा परसेप्शन बहुत ही दोखेबाज है। यह अक्सर हमसे देखा करता है। जो नहीं होता उसको देखता है और जो होता है उसको नहीं देखता है। इसमें विशेषकर हमारे बायस का असर भी होता है। अगर कोई सोचता है की जो हम देखते हैं वही सच्चाई है तो यह केवल आपका भ्रम है। हम सच्चाई को देख नहीं सकते बल्कि सिर्फ अपने दिमाग से पर्सीव कर सकते हैं।
हमारे परसेप्शन पर किन बातों का असर पड़ता है: चलिए देखते हैं की हमारे पेरेसेप्शन पर किन किन चीजों का असर होता है।
  • हमारी इच्छाएं: हम जो वहीँ देखते हैं जो देखना चाहते हैं और इसका सम्भन्ध हमारी इच्छाओं से है। एक शोध में ऐसा पाया गया की अगर किसी को या 13 दिखाएँ तो या तो वो कॉन्टेक्स्ट से बताएंगें की क्या है या अपनी इच्छा से। अगर किसी को B पढ़ने पर कोई पुरुष्कार मिलने वाला हो और 13 पढ़ने पर कोई सजा मिलने वाली हो तो वो बिना प्रयत्न किये हुए सिर्फ अपनी इच्छा अनुसार इसको पढेंगें। आप बताइये की नीचे आपको क्या दिख रहा है ? 13 है या है ?

  • कॉन्टेक्स्ट: इसका सम्भन्ध कॉन्टेक्स्ट से भी होता है। हम जो भी देखते हैं वह सिर्फ और चीजों से अलग नहीं होता। हमने उसके पहले भी कुछ देखा होगा और उसके बाद भी कुछ देखने वाले हैं। नीचे वही चित्र है।
    • 13: अब आप इनको पढ़ के देंखें। सबको इसमें 13 ही दिखेगा।

B: अब आप उसी को पढ़िए तो क्या आपको B नहीं दीखता ?


अब हम दोनों को जोड़ के दिखाते हैं : अब आप ही देख लीजिये की आपकी आँखें दोखेबाज हैं की नहीं। अगर फिर कोई कहे कि उन्होंने अपनी आँखों से देखा है तो उनको हमारे पास ले आइये। :p




  • प्रेरणा: हम जो देखते हैं उसको हमारी प्रेरणा भी प्रभावित करती है। हम वहीँ देखते हैं जिसको देखने की प्रेरणा हमारे अंदर है। इसकी वजह से दो परसेप्शन के बायस हैं।
    • हम वहीँ देखते हैं जो देखना चाहते हैं। इसको मोटिवेशनल बायस कहते हैं।
    • हम जो भी देखें लेकिन वही बताते हैं जिसकी हमारी इच्छा होती है। इसको रिस्पांस बायस कहते हैं।
ऐसा क्यों होता है: हम जो भी देखते हैं उसका निर्णय भी हमारे दिमाग को लेना पड़ता है और इसको अवधारणात्मक निर्णय कहते हैं। हमारे दिमाग के निर्णय पर हमारी इच्छाओं और हमारी प्रेरणाओं का बहुत असर पड़ता है। इसकी दो हापोथेसिस है। एक सिद्धांत के हिसाब से हम जब देखते हैं तो क्यों देखे और कहाँ देखे इसका निर्णय दिमाग के अलग अलग भागों में होता है। [4] अगर इसको देखें तो हमारे विजुअल कोर्टेक्स के दो भाग हैं। एक डोर्सल स्ट्रीम जो हरे रंग की है वह यह बताती है की हम कहाँ देख रहे हैं। और जो पर्पल की वेंट्रल स्ट्रीम है वह बताती है कि हम क्या देख रहे हैं।





इन दोनों विजुअल कोर्टेक्स के न्यूरॉन पर दो चीजों का प्रभाव पड़ता है :

  • हमको जी चीज की इच्छा होती है उसको पाने पर हमारे दिमाग का एक भाग है जिसकी वजह से हमको अच्छा लगता है। इसको रिवॉर्ड सिस्टम कहते हैं। हम जो भी देखते हैं उसपर रिवॉर्ड सिस्टम का बहुत प्रभाव पड़ता है। आप नीचे देख सकते हैं की कौन से न्यूरोट्रांसमीटर और दिमाग के कौन से भाग हमारे रिवॉर्ड सिस्टम को प्रभावित करते हैं। इनका प्रभाव हमारे विसुअल परसेप्शन पर भी पड़ता है क्योंकि दिमाग के वो न्यूरॉन भी इससे प्रभावित होते हैं।



  • हमारे दिमाग एक अटेन्शन सिस्टम बहुत ही काम्प्लेक्स है।  हमारा अटेंशन असल में मनोविज्ञान की किताब का पूरा एक चैप्टर है। लेकिन इसके न्यूरॉन भी हमारे विजुअल परसेप्शन को प्रभावित करते हैं।


अगर इसको संक्षेप में कहें तो हम जो देखते हैं वह हमारे दिमाग के विजुअल कोर्टेक्स में प्रोसेस होता है और इससे हम उसको परसीव करते हैं। हमारी इच्छाओं और हमारी प्रेरणा का हमारे परसेप्शन पर प्रभाव पड़ता है।
इसलिए हम वही देखते हैं जो देखना चाहते हैं। !!!

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